मंगलसूत्र’ प्रेमचंद की अंतिम रचना है। इसमें उन्होंने शहरी और सभ्य समाज को कृत्रिमता के चोले में लिपटा हुआ यथार्थ का आईना दिखाया है।
सभ्यता का कवच ओढ़कर संत कुमार जितना सभ्य होने का नाटक करता है, वह उससे भी कहीं अधिक असभ्य है। संत कुमार का अपने पिता देव कुमार के प्रति विचारों का गहन मतभेद है। जब संत कुमार और उनके मित्र सिन्हा के बीच वार्तालाप होता है, तो वह मतभेद उभरकर सामने आता है-
संत कुमार ने कहा – ” जी चाहता है, इन्हें गोली मार दूं। मैं इन्हें अपना बाप नहीं, शत्रु समझता हूं।”
सिन्हा ने समझाया – ” भई, मेरे दिल में तो उनकी इज्जत होती है। अपने स्वार्थ के लिए आदमी नीचे से नीचा काम कर बैठता है, पर त्यागियों और सत्यवादियों का आदर तो दिल में ही होता है। न जाने तुम्हें उन पर कैसे गुस्सा आता है! जो व्यक्ति सत्य के लिए बड़े से बड़ा कष्ट सहने को तैयार हो, वह वास्तव में पूजने के लायक है।”
Mangalsutra (Hindi) – Munshi Premchand
Mangalsutra (Hindi) – Premchand
मंगलसूत्र– प्रेमचंद
₨205
Availability: 5 in stock
Weight | 0.1 kg |
---|---|
Authors | |
Language | |
Publisher |
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.
Reviews
There are no reviews yet