“…कौरव-पक्ष तब तक अजेय है, जब तक मैं हूँ। परन्तु, वत्स, संसार का रहस्य देखो कि मुझे वह पक्ष ग्रहण करना पड़ा है, जो असत्य है। मेरी आँखों के सामने सत्य अमर्यादित हो, यह मेरे लिए लज्जा की बात होगी। इसीलिए मेरा मन संसार से हट चला है।…” महाभारत-व्यास-कृत महाभारत की सरल-संक्षिप्त प्रस्तुति-हिन्दी को निरालाजी का एक विशिष्ट और अत्यन्त उपयोगी अवदान है। यह पुस्तक विशेष रूप से उन लोगों के लिए लिखी गई है जो संस्कृत-ज्ञान से वंचित हैं। निराला की इस पुस्तक में सभी महत्त्वपूर्ण घटना-प्रसंग समाविष्ट हैं। अपने संवादों में सारे प्रमुख पात्र भी पूरी तरह मुखर हैं! अठारह सर्गों की क्रमबद्ध कथा ऐसी सरस और प्रवाहमयी भाषा-शैली में प्रस्तुत की गई है कि मूल ग्रन्थ को नहीं पढ़ पाने के बावजूद उसके सम्पूर्ण घटनाक्रम और विशिष्ट भावना-लोक से पाठक का सहज ही गहरा रिश्ता बन जाता है। |
Mahabharat – Suryakant Tripathi
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